Shani Vrat

Shani Dev
शनि व्रत ज्यादातर लोग श्रावण मास की शुक्ल पक्ष को प्रारंभ करते है | शनिवार का व्रत कुछ गंभीर प्रकार का है | इसे कुछ लोग शनि ग्रह की शांति के लिए करते है, कुछ लोग भगवन सदाशिव महाराज की प्रसन्नता के लिए रखते है | इस व्रत का फल अति उत्तम होता है | शनि की शाढ़ेसाती में यह व्रत रखने पर शनि की पीड़ा कम होती है और यदि शनि भगवान आप पर प्रसन्न हो जाये तो सम्भव है की आप पर से अपनी दृष्टी भी हटा ले | इस व्रत को करने से शनि के साथ - साथ राहू - केतु की दशा भी सुधर जाती है | 

विधि : शनिवार को प्राय: उठकर स्नान - ध्यान करके संकल्प करना चाहिए | राहू - केतु की लोहे या शीशे की मुर्तिया बनाकर उनकी पूजा करनी चाहिए | काले चावल, काले कपडे, काले फूल व काले चन्दन का प्रयोग करना चाहिए | हो सके तो पूजा पीपल के पेड़ निचे ही करे | पूजा के बाद पेड़ की सात बार प्रदक्षिणा करे | प्रदक्षिणा के बाद पीपल के पेड़ में कच्चा सूत लपेटना चाहिए और शनि देव की प्राथना करनी चाहिए | लोहे के कटोरे में कड़वा तेल भर कर काले रंग के तील या काली चीजो का दान करना चाहिए | यदि हो सके तो काला कपड़ा काली गाय, काली बकरी या काले लोहे के बर्तन का दान करे |

व्रत कथा : बहुत पुराणी बात है, महाराज दशरथ को राज ज्योतिषियों ने बताया की जब शनि ग्रह कृतिका को भेदकर रोहिणी पर आयेंगे तो धरती पर दस सालो का भीषण अकाल पड़ेगा, लोग अन्न - जल के आभाव से मरेंगे और चारो और हाहाकार मच जाएगा | राजा दशरथ ज्योतिषियों की बात सुनकर चिंतित हो गए, उन्होंने अपने गुरु महर्षि वशिष्ठ से इसके निवारण का उपाय पूछा, लेकिन शनि के प्रभाव को दूर करने का कोई उपाय उनको भी मालुम नहीं था | महाराज दशरथ निराश होना न जानते थे | उन्होंने हथियार चढ़ाये और नक्षत्र लोक पर चढ़ाई कर दी | जब शनि कृतिका के पश्च्यात रोहिणी पर आने के लिए तैयार हुए तो महाराज दशरथ ने उनका रास्ता रोक लिया | शनि देव को आज तक दशरथ जैसे पराक्रमी राजा को देखने का अवसर न मिला था | उन्होंने महाराज से कहा - राजेश्वर तुम्हारे इस अलौकिक पराक्रम को देखकर मै परम प्रसन्न हु, आज तक जितने भी देवता, असुर तथा मनुष्य मेरे सम्मुख आये है | सभी जल गए है लेकिन तुम अपने अदभ्य तेज और उग्र ताप के कारण बच गए हो | तुम जो भी वरदान मांगोगे वह मै तुम्हे दूंगा | महाराज दशरथ ने कहा की महाराज आप रोहिणी पर न जाए यही मेरी प्राथना है | शनि देव ने महाराज दशरथ की प्राथना स्वीकार कर ली और उन्हें धरती का दुःख दरिद्र दूर करने वाले शनिवार के व्रत की विधि बतलाई और कहा वे लोग जो मेरे कारण या मेरे मित्र राहू एवं केतु के कारण दुःख भोग रहे है, उनकी रक्षा यह व्रत करेगा | इस व्रत के करने से उन की सभी विपत्तिया दूर हो जायेगी | इसके बाद महाराज दशरथ नक्षत्र लोक से अयोध्या वापस लौट आये और अपने राज्य में शनिवार के व्रत का खूब प्रचार किया तभी से इस व्रत का प्रचलन है |

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