धन लक्ष्मी पूजन विधि Diwali Lakshmi puja

धन लक्ष्मी पूजन विधि

पूजन सामग्री
  • १.कलावा,
  • २. रोली,
  • ३.सिंदूर,
  • ४.नारियल १ ,
  • ५. अक्षत,
  • ६.लाल वस्त्र ,
  • ७.फूल,
  • ८. सुपारी,
  • ९.लौंग,
  • १०.पान के पत्ते,
  • ११. घी,
  • १२.कलश,
  • १३.कलश हेतु आम का पल्लव,
  • १४.चौकी,
  • १५.समिधा,
  • १६.हवन कुण्ड,
  • १७.हवन सामग्री,
  • १८. कमल गट्टे,
  • १९.पंचामृत ( दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल),
  • २०.फल,
  • २१.बताशे,
  • २२.मिठाईयां,
  • २३.पूजा में बैठने हेतु आसन,
  • २४. हल्दी ,
  • २५.अगरबत्ती,
  • २६.कुमकुम,
  • २७. इत्र,
  • २८. दीपक,
  • २९.रूई,
  • ३०.आरती की थाली.
  • ३१.कुशा,
  • ३२. रक्त चंदनद,
  • ३३.श्रीखंड चंदन.
  • ३४.बहीखाता,
  • ३५. कलम और दवात,
  • ३६. नकदी की संदूकची,
माताजी को पुष्प में कमल व गुलाब प्रिय है। फल में श्रीफल, सीताफल, बेर, अनार व सिंघाड़े प्रिय हैं। सुगंध में केवड़ा, गुलाब, चंदन के इत्र का प्रयोग इनकी पूजा में अवश्य करें। अनाज में चावल तथा मिठाई में घर में बनी शुद्धता पूर्ण केसर की मिठाई या हलवा, शिरा का नैवेद्य उपयुक्त है। प्रकाश के लिए गाय का घी, मूँगफली या तिल्ली का तेल इनको शीघ्र प्रसन्न करता है। अन्य सामग्री में गन्ना, कमल गट्टा, खड़ी हल्दी, विल्वपत्र, पंचामृत, गंगाजल, ऊन का आसन, रत्न आभूषण, गाय का गोबर, सिंदूर, भोजपत्र का पूजन में उपयोग करना चाहिए।

चौकी पर लक्ष्मी व गणेश की मूर्तियाँ इस प्रकार रखें कि उनका मुख पूर्व या पश्चिम में रहे। लक्ष्मीजी, गणेशजी की दाहिनी ओर रहें। पूजनकर्ता मूर्तियों के सामने की तरफ बैठें। दो बड़े दीपक रखें। एक में घी भरें व दूसरे में तेल। एक दीपक चौकी के दाईं ओर रखें व दूसरा मूर्तियों के चरणों में। इसके अतिरिक्त एक दीपक गणेशजी के पास रखें।मूर्तियों वाली चौकी के सामने छोटी चौकी रखकर उस  पर लाल वस्त्र बिछाएँ। कलश की ओर एक मुट्ठी चावल से लाल वस्त्र पर नवग्रह की प्रतीक नौ ढेरियाँ बनाएँ। गणेशजी की ओर चावल की सोलह ढेरियाँ बनाएँ। ये  सोलह मातृका की प्रतीक हैं। नवग्रह व षोडश मातृका के बीच स्वस्तिक का चिह्न बनाएँ। इसके बीच में सुपारी रखें व चारों कोनों पर चावल की ढेरी। सबसे ऊपर बीचोंबीच ॐ लिखें। आसन बिछाकर गणपति एवं लक्ष्मी की मूर्ति के सम्मुख बैठ जाएं. इसके बाद अपने आपको तथा आसन को इस मंत्र से शुद्धि करें
सबसे पहले पवित्रीकरण करें।

आप हाथ में पूजा के जलपात्र से थोड़ा सा जल ले लें और अब उसे मूर्तियों के ऊपर  छिड़कें। साथ में मंत्र पढ़ें। इस मंत्र और पानी को छिड़ककर आप अपने आपको पूजा की सामग्री को और अपने आसन को भी पवित्र कर लें।

ॐ पवित्रः अपवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपिवा। 
यः स्मरेत्‌ पुण्डरीकाक्षं स वाह्यभ्यन्तर शुचिः॥ 
पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठः ग षिः सुतलं|
छन्दः कूर्मोदेवता आसने विनियोगः॥

अब पृथ्वी पर जिस जगह आपने आसन बिछाया है, उस जगह को पवित्र कर लें और माँ पृथ्वी को प्रणाम करके मंत्र बोलें-

ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता।
त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्‌॥
पृथिव्यै नमः आधारशक्तये नमः

अब आचमन करें  : पुष्प, चम्मच या अंजुलि से एक बूँद पानी अपने मुँह में छोड़िए और बोलिए-

ॐ केशवाय नमः

और फिर एक बूँद पानी अपने मुँह में छोड़िए और बोलिए-

ॐ नारायणाय नमः

फिर एक तीसरी बूँद पानी की मुँह में छोड़िए और बोलिए-

ॐ वासुदेवाय नमः

फिर ॐ हृषिकेशाय नमः कहते हुए हाथों को खोलें और अंगूठे के मूल से होंठों को पोंछकर हाथों को धो लें। पुनः तिलक लगाने के बाद प्राणायाम व अंगन्यास आदि करें। आचमन करने से विद्या तत्व, आत्म तत्व और बुद्धि तत्व का शोधन  हो जाता है तथा तिलक व अंगन्यास से मनुष्य पूजा की लिए पवित्र हो जाता है।

आचमन आदि के बाद आँखें बंद करके मन को स्थिर कीजिए और तीन बार गहरी  साँस लीजिए। यानी प्राणायाम कीजिए क्योंकि भगवान के साकार रूप का ध्यान करने के लिए यह आवश्यक है फिर पूजा के प्रारंभ में स्वस्तिवाचन किया जाता है। उसके लिए हाथ में पुष्प, अक्षत और थोड़ा जल लेकर स्वतिनः इंद्र वेद मंत्रों का उच्चारण करते हुए परम पिता परमात्मा को प्रणाम किया जाता है। फिर पूजा का संकल्प किया जाता है। संकल्प हर एक पूजा में प्रधान होता है।


दीपावली पूजन हेतु संकल्प

पंचोपचार करने बाद संकल्प करना चाहिए. संकल्प में पुष्प, फल, सुपारी, पान, चांदी का सिक्का, नारियल (पानी वाला), मिठाई, मेवा, आदि सभी सामग्री थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेकर संकल्प मंत्र बोलें :


 ऊं विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:, ऊं तत्सदद्य श्री पुराणपुरुषोत्तमस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्रह्मणो ऽह्नि द्वितीय पराद्र्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे सप्तमे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे जम्बुद्वीपे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गत ब्रह्मवर्तैकदेशे पुण्य (अपने नगर/गांव का नाम लें) क्षेत्रे बौद्धावतारे वीर विक्रमादित्यनृपते : २०६७, तमेऽब्दे शोभन नाम संवत्सरे दक्षिणायने/उत्तरायणे हेमंत ऋतो महामंगल्यप्रदे मासानां मासोत्तमे कार्तिक मासे कृष्ण पक्षे अमावस तिथौ (जो वार हो) शुक्र वासरे स्वाति नक्षत्रे प्रीति योग नाग करणादिसत्सुशुभे योग (गोत्र का नाम लें) गोत्रोत्पन्नोऽहं अमुकनामा (अपना नाम लें) सकलपापक्षयपूर्वकं सर्वारिष्ट शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया– श्रुतिस्मृत्यो- क्तफलप्राप्तर्थं— निमित्त महागणपति नवग्रहप्रणव सहितं कुलदेवतानां पूजनसहितं स्थिर लक्ष्मी महालक्ष्मी देवी पूजन निमित्तं एतत्सर्वं शुभ-पूजोपचारविधि सम्पादयिष्ये.


गणपति पूजन 

किसी भी पूजा में सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा की जाती है. इसलिए आपको भी सबसे पहले गणेश जी की ही पूजा करनी चाहिए. हाथ में पुष्प लेकर गणपति का ध्यान करें.

गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।
आवाहन: ऊं गं गणपतये इहागच्छ इह तिष्ठ 

कहकर पात्र में अक्षत छोड़ें.


अर्घा में जल लेकर बोलें : 

एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं,
पुनराचमनीयम् ऊं गं गणपतये नम:

 रक्त चंदन लगाएं: 

इदम रक्त चंदनम् लेपनम् ऊं गं गणपतये नम:

इसी प्रकार श्रीखंड चंदन बोलकर श्रीखंड चंदन लगाएं. इसके पश्चात सिन्दूर चढ़ाएं 

इदं सिन्दूराभरणं लेपनम् ऊं गं गणपतये नम:. 

दर्वा और विल्बपत्र भी गणेश जी को चढ़ाएं. गणेश जी को वस्त्र पहनाएं. 

इदं रक्त वस्त्रं ऊं गं गणपतये समर्पयामि.

पूजन के बाद गणेश जी को प्रसाद अर्पित करें: 

इदं नानाविधि नैवेद्यानि ऊं गं गणपतये समर्पयामि:।

मिष्टान अर्पित करने के लिए मंत्र:

इदं शर्करा घृत युक्त नैवेद्यं ऊं गं गणपतये समर्पयामि:

प्रसाद अर्पित करने के बाद आचमन करायें.

 इदं आचमनयं ऊं गं गणपतये नम:

इसके बाद पान सुपारी चढ़ायें: 

इदं ताम्बूल पुगीफल समायुक्तं ऊं गं गणपतये समर्पयामि:

अब एक फूल लेकर गणपति पर चढ़ाएं और बोलें: 

एष: पुष्पान्जलि ऊं गं गणपतये नम:

इसी प्रकार से अन्य सभी देवताओं की पूजा करें. जिस देवता की पूजा करनी हो गणेश के स्थान पर उस देवता का नाम लें।


कलश पूजन 

घड़े या लोटे पर मोली बांधकर कलश के ऊपर आम का पल्लव रखें. कलश के अंदर सुपारी, दूर्वा, अक्षत, मुद्रा रखें. कलश के गले में मोली लपेटें. नारियल पर वस्त्र लपेट कर कलश पर रखें. हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर वरूण देवता का कलश में आह्वान करें.

ओ३म् त्तत्वायामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदाशास्ते यजमानो हविभि:।
अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुशंस मान आयु: प्रमोषी:।
(अस्मिन कलशे वरुणं सांगं सपरिवारं सायुध सशक्तिकमावाहयामि,
ओ३म्भूर्भुव: स्व:भो वरुण इहागच्छ इहतिष्ठ। स्थापयामि पूजयामि॥)

इसके बाद जिस प्रकार गणेश जी की पूजा की है उसी प्रकार वरूण देवता की पूजा करें. इसके बाद देवराज इन्द्र फिर कुबेर की पूजा करें.


लक्ष्मी पूजन

सबसे पहले माता लक्ष्मी का ध्यान करें

ॐ या सा पद्मासनस्था, विपुल-कटि-तटी, पद्म-दलायताक्षी।
गम्भीरावर्त-नाभिः, स्तन-भर-नमिता, शुभ्र-वस्त्रोत्तरीया।।
लक्ष्मी दिव्यैर्गजेन्द्रैः। मणि-गज-खचितैः, स्नापिता हेम-कुम्भैः।
नित्यं सा पद्म-हस्ता, मम वसतु गृहे, सर्व-मांगल्य-युक्ता।।

इसके बाद लक्ष्मी देवी की प्रतिष्ठा करें. हाथ में अक्षत लेकर बोलें

“ॐ भूर्भुवः स्वः महालक्ष्मी, इहागच्छ इह तिष्ठ, 
एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम्।”


आसन : 

आसनानार्थेपुष्पाणिसमर्पयामि। 

आसन के लिए फूल चढाएं

पाद्य :

ॐअश्वपूर्वोरथमध्यांहस्तिनादप्रबोधिनीम्।
श्रियंदेवीमुपह्वयेश्रीर्मादेवींजुषाताम्।।
पादयो:पाद्यंसमर्पयामि।

जल चढाएं

अ‌र्घ्य

हस्तयोर‌र्घ्यसमर्पयामि। 

अ‌र्घ्यसमर्पित करें।

आचमन

स्नानीयं जलंसमर्पयामि। 
स्नानान्ते आचमनीयंजलंचसमर्पयामि।

स्नानीयऔर आचमनीय जल चढाएं।

पय:स्नान

ॐपय: पृथिव्यांपयओषधीषुपयोदिव्यन्तरिक्षेपयोधा:।
पयस्वती:प्रदिश:संतु मह्यम्।।
पय: स्नानंसमर्पयामि।
पय: स्नानान्तेआचमनीयं जलंसमर्पयामि।

दूध से स्नान कराएं, पुन:शुद्ध जल से स्नान कराएं और आचमन के लिए जल चढाएं।

दधिस्नान

दधिस्नानं समर्पयामि, 
दधि स्नानान्तेआचमनीयंजलं समर्पयामि।

दही से स्नान कराने के बाद शुद्ध जल से स्नान कराएं तथा आचमन के लिए जल समर्पित करें।

घृत स्नान

घृतस्नानं समर्पयामि,
घृतस्नानान्ते आचमनीयंजलंसमर्पयामि।

घृत से स्नान कराकर पुन:आचमन के लिए जल चढाएं।

मधु स्नान

मधुस्नानंसमर्पयामि, 
मधुस्नानान्ते आचमनीयंजलं समर्पयामि।

मधु से स्नान कराकर आचमन के लिए जल समर्पित करें।

शर्करा स्नान

शर्करास्नानं समर्पयामि, 
शर्करास्नानान्तेशुद्धोदकस्नानान्तेआचमनीयं जलं समर्पयामि।

शर्करा से स्नान कराकर आचमन के लिए जल चढाएं।

पञ्चमृतस्नान

पञ्चमृतस्नानं समर्पयामि, 
पञ्चामृतस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानंसमर्पयामि,
शुद्धोदकस्नानान्तेआचमनीयंजलं समर्पयामि।

पञ्चमृत से स्नान कराकर शुद्ध जल से स्नान कराएं तथा आचमन के लिए जल चढाएं।

गन्धोदकस्नान

गन्धोदकस्नानंसमर्पयामि,
गन्धोदकस्नानान्तेआचमनीयंसमर्पयामि।

गन्धोदकसे स्नान कराकर आचमन के लिए जल चढाएं।

शुद्धोदकस्नान

शुद्धोदकस्नानंसमर्पयामि।

शुद्ध जल से स्नान कराएं तथा आचमन के लिए जल समर्पित करें।

वस्त्र

वस्त्रंसमर्पयामि,वस्त्रान्तेआचमनीयंजलंसमर्पयामि।

उपवस्त्र

उपवस्त्रंसमर्पयामि,
उपवस्त्रान्ते आचमनीयंजलंसमर्पयामि।

उपवस्त्रचढाएं तथा आचमन के लिए जल समर्पित करें।

लक्ष्मी देवी की अंग पूजा Laxmi Ang Puja for Diwali

बायें हाथ में अक्षत लेकर दायें हाथ से थोड़ा-थोड़ा छोड़ते जायें— 

ऊं चपलायै नम: पादौ पूजयामि ऊं चंचलायै नम: जानूं पूजयामि, ऊं कमलायै नम: कटि पूजयामि, ऊं कात्यायिन्यै नम: नाभि पूजयामि, ऊं जगन्मातरे नम: जठरं पूजयामि, ऊं विश्ववल्लभायै नम: वक्षस्थल पूजयामि, ऊं कमलवासिन्यै नम: भुजौ पूजयामि, ऊं कमल पत्राक्ष्य नम: नेत्रत्रयं पूजयामि, ऊं श्रियै नम: शिरं: पूजयामि।

अष्टसिद्धि पूजा Ashtsidhi Puja for Diwali

अंग पूजन की भांति हाथ में अक्षत लेकर मंत्रोच्चारण करें. 

ऊं अणिम्ने नम:, ओं महिम्ने नम:, ऊं गरिम्णे नम:, ओं लघिम्ने नम:, ऊं प्राप्त्यै नम: ऊं प्राकाम्यै नम:, ऊं ईशितायै नम: ओं वशितायै नम:।

अष्टलक्ष्मी पूजन - Asht Laxmi Puja for Diwali

अंग पूजन एवं अष्टसिद्धि पूजा की भांति हाथ में अक्षत लेकर मंत्रोच्चारण करें. ऊं आद्ये लक्ष्म्यै नम:, ओं विद्यालक्ष्म्यै नम:, ऊं सौभाग्य लक्ष्म्यै नम:, ओं अमृत लक्ष्म्यै नम:, ऊं लक्ष्म्यै नम:, ऊं सत्य लक्ष्म्यै नम:, ऊं भोगलक्ष्म्यै नम:, ऊं योग लक्ष्म्यै नम:

यज्ञोपवीत

यज्ञोपवीतंपरपमंपवित्रंप्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात्।
आयुष्यमग्यंप्रतिमुञ्चशुभ्रंयज्ञांपवीतंबलमस्तुतेज:।।
यज्ञोपवीतं समर्पयामि।

यज्ञोपवीत समर्पित करें।

गंध-अर्पण

गन्धानुलेपनंसमर्पयामि।
चंदनउपलेपित करें।

सुगंधित द्रव्य

सुगंधित द्रव्यंसमर्पयामि।

सुगंधित द्रव्य चढाएं।

अक्षत

अक्षतान्समर्पयामि।

अक्षत चढाएं।

पुष्पमाला

पुष्पमालां समर्पयामि।

पुष्पमाला चढाएं।

बिल्व पत्र

बिल्वपत्राणि समर्पयामि।

बिल्व पत्र समर्पित करें।

नाना परिमलद्रव्य

नानापरिमल द्रव्याणिसमर्पयामि।

विविध परिमल द्रव्य चढाएं

धूप

धूपंमाघ्रापयामि।

धूप अर्पित करें।

दीप

दीपं दर्शयामि।

दीप दिखलाएं और हाथ धो लें।

नैवेद्य

नैवेद्यं निवेदायामि।नैवेद्यान्तेध्यानम्
ध्यानान्तेआचमनीयंजलंसमर्पयामि।

नैवेद्य निवेदित करे, तदनंतर भगवान का ध्यान करके आचमन के लिए जल चढाएं।

ताम्बूल पुंगीफल

मुखवासार्थेसपुंगीफलंताम्बूलपत्रंसमर्पयामि।

पान और सुपारी चढाएं।

दक्षिणा

कृताया:पूजाया:साद्रुण्यार्थेद्रव्यदक्षिणां समर्पयामि।

द्रव्य दक्षिणा समर्पित करें।


लक्ष्मी देवी की पूजा के बाद भगवान विष्णु एवं शिव जी पूजा करनी चाहिए फिर गल्ले की पूजा करें. पूजन के पश्चात सपरिवार आरती और क्षमा प्रार्थना करें


क्षमा प्रार्थना


न मंत्रं नोयंत्रं तदपिच नजाने स्तुतिमहो
न चाह्वानं ध्यानं तदपिच नजाने स्तुतिकथाः ।
नजाने मुद्रास्ते तदपिच नजाने विलपनं
परं जाने मातस्त्व दनुसरणं क्लेशहरणं

विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया
विधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्याच्युतिरभूत् ।
तदेतत् क्षंतव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति

पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहवः संति सरलाः
परं तेषां मध्ये विरलतरलोहं तव सुतः ।
मदीयो7यंत्यागः समुचितमिदं नो तव शिवे
कुपुत्रो जायेत् क्वचिदपि कुमाता न भवति

जगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा न रचिता
न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया ।
तथापित्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदप कुमाता न भवति

परित्यक्तादेवा विविध सेवाकुलतया
मया पंचाशीतेरधिकमपनीते तु वयसि
इदानींचेन्मातः तव यदि कृपा
नापि भविता निरालंबो लंबोदर जननि कं यामि शरणं

श्वपाको जल्पाको भवति मधुपाकोपमगिरा
निरातंको रंको विहरति चिरं कोटिकनकैः
तवापर्णे कर्णे विशति मनुवर्णे फलमिदं
जनः को जानीते जननि जपनीयं जपविधौ

चिताभस्म लेपो गरलमशनं दिक्पटधरो
जटाधारी कंठे भुजगपतहारी पशुपतिः
कपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवीं
भवानि त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदं

न मोक्षस्याकांक्षा भवविभव वांछापिचनमे
न विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छापि न पुनः
अतस्त्वां सुयाचे जननि जननं यातु मम वै
मृडाणी रुद्राणी शिवशिव भवानीति जपतः

नाराधितासि विधिना विविधोपचारैः
किं रूक्षचिंतन परैर्नकृतं वचोभिः
श्यामे त्वमेव यदि किंचन मय्यनाधे
धत्से कृपामुचितमंब परं तवैव

आपत्सु मग्नः स्मरणं त्वदीयं
करोमि दुर्गे करुणार्णवेशि
नैतच्छदत्वं मम भावयेथाः
क्षुधातृषार्ता जननीं स्मरंति

जगदंब विचित्रमत्र किं
परिपूर्ण करुणास्ति चिन्मयि
अपराधपरंपरावृतं नहि माता
समुपेक्षते सुतं

मत्समः पातकी नास्ति
पापघ्नी त्वत्समा नहि
एवं ज्ञात्वा महादेवि
यथायोग्यं तथा कुरु


बहीखाता पूजन

बही, बसना तथा थैली में रोली या केसरयुक्त चंदन से स्वस्तिक का चिह्न बनाएं एवं थैली में पांच हल्दी की गांठें, धनिया, कमलगट्टा, अक्षत, दूर्वा और द्रव्य रखकर उसमें सरस्वती का पूजन करें। सर्वप्रथम सरस्वती का ध्यान इस प्रकार करें-

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवै: सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेषजाड्यापहा।।
ऊँ वीणापुस्तकधारिण्यै श्रीसरस्वत्यै नम:

इस नाममंत्र से गंधादि उपचारों द्वारा पूजन करें-

कुबेर पूजन

तिजोरी अथवा रुपए रखे जाने वाले संदूक आदि को स्वस्तिकादि से अलंकृत कर उसमें निधिपति कुबेर का आह्वान करें-

आवाहयामि देव त्वामिहायाहि कृपां कुरु।
कोशं वद्र्धय नित्यं त्वं परिरक्ष सुरेश्वर।।

आह्वान के बाद ऊँ कुबेराय नम: इस नाममंत्र से गंध, पुष्प आदि से पूजन कर अंत में इस प्रकार प्रार्थना करें-

धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च।
भगवान् त्वत्प्रसादेन धनधान्यादिसम्पद:।।

इस प्रकार प्रार्थनाकर पूर्व पूजित हल्दी, धनिया, कमलगट्टा, द्रव्य, दूर्वादि से युक्त थैली तिजोरी मे रखें। तुला (तराजू) पूजन- सिंदूर से तराजू पर स्वस्तिक बना लें। मौली लपेटकर तुला देवता का इस प्रकार ध्यान करें-

नमस्ते सर्वदेवानां शक्तित्वे सत्यमाश्रिता।
साक्षीभूता जगद्धात्री निर्मिता विश्वयोनिना।।
ध्यान के बाद ऊँ तुलाधिष्ठातृदेवतायै नम:

इस नाममंत्र से गंधाक्षतादि उपचारों द्वारा पूजन कर नमस्कार करें।


दीपमालिका (दीपक) पूजन

किसी पात्र में ग्यारह, इक्कीस या उससे अधिक दीपकों को प्रज्वलित कर महालक्ष्मी के समीप रखकर उस दीपज्योति का ऊँ दीपावल्यै नम: इस नाममंत्र से गंधादि उपचारों द्वारा पूजन कर इस प्रकार प्रार्थना करें-

त्वं ज्योतिस्त्वं रविश्चनद्रो विद्युदग्निश्च तारका:।
सर्वेषां ज्योतिषां ज्योतिर्दीपावल्यै नमो नम:।।

दीपमालिकाओं का पूजन कर संतरा, ईख, धान इत्यादि पदार्थ चढ़ाएं। धान का लावा(खील) गणेश, महालक्ष्मी तथा अन्य सभी देवी-देवताओं को भी अर्पित करें। अंत में अन्य सभी दीपकों को प्रज्वलित कर उनसे संपूर्ण ग्राहकों अलंकृत करें।

दीपावली पर इस प्रकार बहीखाता, कुबेर, तुला व दीपमाला पूजन के साथ ही देवी लक्ष्मी का पूजन, देहलीविनायक, कलम व दवात का पूजन भी किया जाता है|

......Om Tat Sat.....

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